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यु॒ञ्जा॒नः प्र॑थ॒मं मन॑स्त॒त्त्वाय॑ सवि॒ता धियः॑। अ॒ग्नेर्ज्योति॑र्नि॒चाय्य॑ पृथि॒व्याऽअध्याभ॑रत् ॥१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒ञ्जा॒नः। प्र॒थ॒मम्। मनः॑। त॒त्त्वाय॑। स॒वि॒ता। धियः॑। अ॒ग्नेः। ज्योतिः॑। नि॒चाय्येति॑ नि॒चाऽय्य॑। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑। आ। अ॒भ॒र॒त् ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ग्यारहवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में योगाभ्यास और भूगर्भविद्या का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सविता) ऐश्वर्य को चाहनेवाला मनुष्य (तत्त्वाय) उन परमेश्वर आदि पदार्थों के ज्ञान होने के लिये (प्रथमम्) पहिले (मनः) विचारस्वरूप अन्तःकरण की वृत्तियों को और (धियः) धारणारूप अन्तःकरण की वृत्तियों को (युञ्जानः) योगाभ्यास और भूगर्भविद्या में युक्त करता हुआ (अग्नेः) पृथिवी आदि में रहने वाली बिजुली के (ज्योतिः) प्रकाश को (निचाय्य) निश्चय करके (पृथिव्याः) भूमि के (अधि) ऊपर (आभरत्) अच्छे प्रकार धारण करे, वह योगी और भूगर्भ-विद्या का जाननेवाला होवे ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष योगाभ्यास और भूगर्भविद्या किया चाहे, वह यम आदि योग के अङ्ग और क्रिया-कौशलों से अपने हृदय को शुद्ध करके तत्त्वों को जानने के लिये बुद्धि को प्राप्त करके और इन को गुण, कर्म तथा स्वभाव से जान के उपयोग लेवे। फिर जो प्रकाशमान सूर्य्यादि पदार्थ हैं, उन का भी प्रकाशक ईश्वर है, उस को जान और अपने आत्मा में निश्चय करके अपने और दूसरों के सब प्रयोजनों को सिद्ध करे ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ योगाभ्यासभूगर्भविद्योपदेशमाह ॥

अन्वय:

(युञ्जानः) योगाभ्यासं भूगर्भविद्यां च कुर्वाणः (प्रथमम्) आदौ (मनः) मननात्मिकान्तःकरणवृत्तीः (तत्त्वाय) तेषां परमेश्वरादीनां पदार्थानां भावाय (सविता) ऐश्वर्यमिच्छुः (धियः) धारणात्मिका अन्तःकरणवृत्तीः (अग्नेः) पृथिव्यादिस्थाया विद्युतः (ज्योतिः) प्रकाशम् (निचाय्य) निश्चित्य (पृथिव्याः) भूमेः (अधि) उपरि (आ) समन्तात् (अभरत्) धरेत्। [अयं मन्त्रः शत०६.३.१.१३ व्याख्यातः] ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यः सविता मनुष्यस्तत्त्वाय प्रथमं मनो धियश्च युञ्जानोऽग्नेर्ज्योतिर्निचाय्य पृथिव्या अध्याभरत्, स पदार्थविद्याविच्च जायेत ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - यो जनो योगं भूगर्भविद्यां च चिकीर्षेत् स यमादिभिः क्रियाकौशलैश्चाऽन्तःकरणं पवित्रीकृत्य तत्त्वानां विज्ञानाय प्रज्ञां समज्यैतानि गुणकर्मस्वभावतो विदित्वोपयुञ्जीत। पुनर्यत् प्रकाशमानानां सूर्य्यादीनां प्रकाशकं ब्रह्मास्ति, तद्विज्ञाय स्वात्मनि निश्चित्य सर्वाणि स्वपरप्रयोजनानि साध्नुयात् ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष योगाभ्यास व भूगर्भविद्या जाणू इच्छितात त्यांनी यम इत्यादी योगांगाच्या साह्याने व कार्यकुशलतेने आपल्या अंतःकरणातील शुद्ध तत्त्वाला जाणून सूक्ष्म बुद्धीने (गुण, कर्म, स्वभावाने जाणावे. त्याचा योग्य उपयोग करून घ्यावा. सूर्य इत्यादी जे प्रकाश देणारे पदार्थ आहेत त्यांचा प्रकाशक ईश्वर आहे हे निश्चयाने जाणून आपले व इतरांचे इप्सित साध्य करावे.